सोरठि महला ५ ॥ चरन कमल सिउ जा का मनु लीना से जन त्रिपति अघाई ॥ गुण अमोल जिसु रिदै न वसिआ ते नर त्रिसन त्रिखाई ॥१॥ हरि आराधे अरोग अनदाई ॥ जिस नो विसरै मेरा राम सनेही तिसु लाख बेदन जणु आई ॥ रहाउ ॥ जिह जन ओट गही प्रभ तेरी से सुखीए प्रभ सरणे ॥ जिह नर बिसरिआ पुरखु बिधाता ते दुखीआ महि गनणे ॥२॥ जिह गुर मानि प्रभू लिव लाई तिह महा अनंद रसु करिआ ॥ जिह प्रभू बिसारि गुर ते बेमुखाई ते नरक घोर महि परिआ ॥३॥ जितु को लाइआ तित ही लागा तैसो ही वरतारा ॥ नानक सह पकरी संतन की रिदै भए मगन चरनारा ॥४॥४॥१५॥
Those whose minds are attached to the lotus feet of the Lord – those humble beings are satisfied and fulfilled. But those, within whose hearts the priceless virtue does not abide – those men remain thirsty and unsatisfied. ||1|| Worshipping the Lord in adoration, one becomes happy, and free of disease. But one who forgets my Dear Lord – know him to be afflicted with tens of thousands of illnesses. ||Pause|| Those who hold tightly to Your Support, God, are happy in Your Sanctuary. But those humble beings who forget the Primal Lord, the Architect of Destiny, are counted among the most miserable beings.||2|| One who has faith in the Guru, and who is lovingly attached to God, enjoys the delights of supreme ecstasy. One who forgets God and forsakes the Guru, falls into the most horrible hell. ||3|| As the Lord engages someone, so he is engaged, and so does he perform. Nanak has taken to the Shelter of the Saints; his heart is absorbed in the Lord’s feet. ||4||4||15||
अर्थ :- हे भाई ! जिन मनुष्यों का मन भगवान के कमल के फूल फूलों जैसे कोमल चरणों के साथ परच जाता है, वह मनुख (माया की तरफ से) पूरे तौर पर संतोखी रहते हैं। पर जिस जिस मनुख के हृदय में परमात्मा के अमोलक गुण नहीं बसते , वह मनुख माया की त्रिशना में फसे रहते हैं।1। हे भाई ! परमात्मा का आराधन करने के साथ नरोए हो जाते हैं, आत्मिक अनंद बना रहता है। पर जिस मनुख को मेरा प्यारा भगवान भुल जाता है, उस ऊपर (इस प्रकार) जानो (जैसे) लाखों तकलीफें आ पड़ती हैं।रहाउ। हे भगवान ! जिन मनुष्यों ने तेरा सहारा लिया,वह तेरी शरण में रह के सुख मनाते हैं। पर,हे भाई ! जिन मनुष्यों को सर्व-व्यापक करतार भुल जाता है, वह मनुख दुखीयों में गिने जाते हैं।2। हे भाई ! जिन मनुष्यों ने गुरु की आज्ञा मान कर के परमात्मा में सुरति जोड़ ली, उन्हों ने बड़ा आनंद बड़ा रस मनाया। पर जो मनुख परमात्मा को भुला के गुरु की तरफ से मुँह मोड़ी रखते हैं वह भयानक नरक में पड़े रहते हैं।3। हे नानक ! (जीवों के क्या वश ?) जिस काम में परमात्मा किसी जीव को लगाता है उसे काम में ही वह लगा रहता है, हरेक जीव उसी प्रकार काम करता है। जिन मनुष्यों ने (भगवान की प्रेरणा के साथ) संत जनों का सहारा लिया है वह अंदर से भगवान के चरणों में ही मस्त रहते हैं।
May 23, 2016 : Today’s Hukamnama (Mukhwak) from Sri Darbar Sahib (Golden Temple) Amritsar in Punjabi and Hindi with Meaning in Punjabi, Hindi and English
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ भरि जोबनि मै मत पेईअड़ै घरि पाहुणी बलि राम जीउ ॥ मैली अवगणि चिति बिनु गुर गुण न समावनी बलि राम जीउ ॥ गुण सार न जाणी भरमि भुलाणी जोबनु बादि गवाइआ ॥ वरु घरु दरु दरसनु नही जाता पिर का सहजु न भाइआ ॥ सतिगुर पूछि न मारगि चाली सूती रैणि विहाणी ॥ नानक बालतणि राडेपा बिनु पिर धन कुमलाणी ॥१॥
One Universal Creator God. By The Grace Of The True Guru: Intoxicated with the wine of youth, I did not realize that I was only a guest at my parents’ home (in this world). My consciousness is polluted with faults and mistakes; without the Guru, virtue does not even enter into me. I have not known the value of virtue; I have been deluded by doubt. I have wasted away my youth in vain. I have not known my Husband Lord, His celestial home and gate, or the Blessed Vision of His Darshan. I have not had the pleasure of my Husband Lord’s celestial peace. After consulting the True Guru, I have not walked on the Path; the night of my life is passing away in sleep. O Nanak, in the prime of my youth, I am a widow; without my Husband Lord, the soul-bride is wasting away. ||1||
ਰਾਗ ਸੂਹੀ, ਘਰ ੧ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ‘ਛੰਤ’ (ਛੰਦ)। ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਇੱਕ ਹੈ ਅਤੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਮਿਲਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ ਜੀ! ਮੈਂ ਤੈਥੋਂ ਸਦਕੇ ਹਾਂ (ਤੂੰ ਕੈਸੀ ਅਚਰਜ ਲੀਲਾ ਰਚਾਈ ਹੈ!) ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ (ਤੇਰੀ ਰਚੀ ਮਾਇਆ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੇਠ) ਜਵਾਨੀ ਦੇ ਸਮੇ ਇਉਂ ਮਸਤ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀ ਕੇ ਮਦ ਹੋਸ਼ ਹੈ, (ਇਹ ਭੀ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦੀ ਕਿ) ਇਸ ਪੇਕੇ-ਘਰ ਵਿਚ (ਇਸ ਜਗਤ ਵਿਚ) ਉਹ ਇਕ ਪ੍ਰਾਹੁਣੀ ਹੀ ਹੈ। ਵਿਕਾਰਾਂ ਦੀ ਕਮਾਈ ਨਾਲ ਚਿੱਤ ਵਿਚ ਉਹ ਮੈਲੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਜੋ (ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦੀ, ਤੇ) ਗੁਰੂ (ਦੀ ਸਰਨ ਪੈਣ) ਤੋਂ ਬਿਨਾ (ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ) ਗੁਣ ਟਿਕ ਨਹੀਂ ਸਕਦੇ। (ਮਾਇਆ ਦੀ) ਭਟਕਣਾ ਵਿਚ ਪੈ ਕੇ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੇ (ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ) ਗੁਣਾਂ ਦੀ ਕੀਮਤ ਨਾਹ ਸਮਝੀ, ਕੁਰਾਹੇ ਪਈ ਰਹੀ, ਤੇ ਜਵਾਨੀ ਦਾ ਸਮਾ ਵਿਅਰਥ ਗਵਾ ਲਿਆ। ਨਾਹ ਉਸ ਨੇ ਖਸਮ-ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਲ ਸਾਂਝ ਪਾਈ, ਨਾਹ ਉਸ ਦੇ ਦਰ ਨਾਹ ਉਸ ਦੇ ਘਰ ਤੇ ਨਾਹ ਹੀ ਉਸ ਦੇ ਦਰਸਨ ਦੀ ਕਦਰ ਪਛਾਣੀ। (ਭਟਕਣਾ ਵਿਚ ਹੀ ਰਹਿ ਕੇ) ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭੂ-ਪਤੀ ਦਾ ਸੁਭਾਉ ਭੀ ਪਸੰਦ ਨਾਹ ਆਇਆ। ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਸੁੱਤੀ ਹੋਈ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਸਾਰੀ ਰਾਤ ਬੀਤ ਗਈ, ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਲੈ ਕੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਠੀਕ ਰਸਤੇ ਉਤੇ ਕਦੇ ਭੀ ਨਾਹ ਤੁਰੀ। ਹੇ ਨਾਨਕ! ਅਜੇਹੀ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੇ ਤਾਂ ਬਾਲ-ਉਮਰੇ ਹੀ ਰੰਡੇਪਾ ਸਹੇੜ ਲਿਆ, ਤੇ ਪ੍ਰਭੂ-ਪਤੀ ਦੇ ਮਿਲਾਪ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਉਸ ਦਾ ਹਿਰਦਾ-ਕਮਲ ਕੁਮਲਾਇਆ ਹੀ ਰਿਹਾ ॥੧॥ राग सूही, घर १ में गुरु नानक देव जी की बानी ‘छंत’ । अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे प्रभु जी! में तेरे से सदके हूँ (तुने कैसी अचरज लीला रचाई है!) जीव-स्त्री (तेरी रची माया की प्रभाव के निचे) जवानी के समय ऐसे मस्त है जैसे शराब पी कर मदहोश है, (यह भी नहीं समझती कि) इस मायके-घर में (इस जगत में) वह एक मेहमान ही है। विकारों की कमी से मन में वह रहती है जो (गुरु की सरन नहीं आती, और) गुरु (की सरन आये) बिना (हृदय में) गुण टिक नहीं सकते। (माया की) भटकन के पड़ कर जिव-स्त्री ने (प्रभु के गुणों की कीमत नहीं समझी, कुराहे पड़ी रही, और जवानी का समां विअर्थ गवां लिया। न उस ने खसम प्रभु के साथ साँझ डाली, न उस के दर, न उस के घर और न ही उस के दर्शन की कदर पहचानी। (भटकन में रह के) जीव-इस्त्री को प्रभु पति का सवभाव ही पसंद नहीं आया। माया के मोह में सोई हुई जिव-स्त्री की जिन्दगी की सारी रात बीत गयी, सतगुरु की शिक्षा ले के जीवन के ठीक रस्ते पर कभी भी न चली। हे नानक! ऐसी जिव-स्त्री ने तो बाल-उम्र में ही रंडेपा बुला लिया, और प्रभु-पति के मिलाप के बिना उस का हृदय-कमल मुरझाया ही रहा॥१॥
April 28, 2016 : Today’s Hukamnama (Mukhwak) from Sri Darbar Sahib (Golden Temple) Amritsar in Gurmukhi and Hindi with Meaning in Gurmukhi, Hindi and English
One Universal Creator God. By The Grace Of The True Guru: Blessed is the Creator, the True King, who has linked the whole world to its tasks. When one’s time is up, and the measure is full, this dear soul is caught, and driven off. This dear soul is driven off, when the pre-ordained Order is received, and all the relatives cry out in mourning. The body and the swan-soul are separated, when one’s days are past and done, O my mother. As is one’s pre-ordained Destiny, so does one receive, according to one’s past actions. Blessed is the Creator, the True King, who has linked the whole world to its tasks. ||1||
राग वडहंस, घर ५ में गुरु नानकदेव जी की बाणी ‘अलाहनियाँ’।अकालपुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। वह सिरजनहार पातशाह सदा कायम रहने वाला है, जिस ने जगत को माया के आहर में लगा रखा है। जब जीव को मिला समां ख़तम हो जाता है और जब इस की उम्र की प्याली भर जाती है तो (सरीर के) प्यारे साथी को पकड़ के आगे लगा लिया जाता है। (उम्र का समां ख़तम होने पर) जब परमात्मा का लिखा (हुक्म) आता है तो सारे सज्जन संबंधी रोते हैं। हे मेरी माँ! जब उम्र के दिन पूरे हो जाते हैं, तो सरीर और जीवात्मा का (सदा के लिए) विशोड़ा हो जाता है। (उस अंत समय से) पहले पहले जो जो कर्म जिव ने कमाया होता है (उस उस के अनुसार) जैसा जैसा संसार का लेख (उस के माथे पर) लिखा जाता है वैसा फल जीव पाता है। वह सिरजनहार पातशाह सदा कायम रहने वाला है, जिस ने जगत को माया के आहर में लगा रखा है॥१॥
April 27, 2016 : Today’s Hukamnama (Mukhwak) from Sri Darbar Sahib (Golden Temple) Amritsar in Gurmukhi and Hindi with Meaning in Gurmukhi, Hindi and English
सलोकु ॥ किआ सुणेदो कूड़ु वंञनि पवण झुलारिआ ॥ नानक सुणीअर ते परवाणु जो सुणेदे सचु धणी ॥१॥ छंतु ॥ तिन घोलि घुमाई जिन प्रभु स्रवणी सुणिआ राम ॥ से सहजि सुहेले जिन हरि हरि रसना भणिआ राम ॥ से सहजि सुहेले गुणह अमोले जगत उधारण आए ॥ भै बोहिथ सागर प्रभ चरणा केते पारि लघाए ॥ जिन कंउ क्रिपा करी मेरै ठाकुरि तिन का लेखा न गणिआ ॥ कहु नानक तिसु घोलि घुमाई जिनि प्रभु स्रवणी सुणिआ ॥१॥
Shalok: Why do you listen to falsehood? It shall vanish like a gust of wind. O Nanak, those ears are acceptable, which listen to the True Master. ||1|| Chhant: I am a sacrifice to those who listen with their ears to the Lord God. Blissful and comfortable are those, who with their tongues chant the Name of the Lord, Har, Har. They are naturally embellished, with priceless virtues; they have come to save the world. God’s Feet are the boat, which carries so many across the terrifying world-ocean. Those who are blessed with the favor of my Lord and Master, are not asked to render their account. Says Nanak, I am a sacrifice to those who listen to God with their ears. ||1||
हे भाई! नास्वंत पदार्थों की बात क्या सुनता है? (यह पदार्थ तो) हवा के झोंको की तरहां चले जाते हैं। हे नानक! (सिर्फ) वह कान (परमात्मा की हजूरी में) कबूल हैं जो सदा रहने वाले परमात्मा (की सिफत-सलाह)को सुनते हैं।१। छंतु। हे भाई! जिन लोगो ने अपने कानो से प्रभु (का नाम) सुना है, उनसे तो मैं कुर्बान जाता हूँ। जो मनुख अपने जिव्हा से परमात्मा का नाम जपते हैं वह आत्मिक अडोलता में टिक के सुखी रहते हैं। वह मनुख आत्मिक अडोलता में टिक के सुखी जीवन जीते हैं, वेह अमोलिक गुणों वाले हो जाते हैं, वेह तो जगत को संसार-समुन्दर से पार निकालने के लिए आते हैं। मेरे मालिक प्रभु ने जिस के ऊपर कृपा (की नजर) की, उनके कर्मो का हिसाब उसने छोड़ दिया। हे नानक! कह-मैं उस मनुख से सदके कुर्बान जाता हूँ जिस ने अपने कानो से परमात्मा (की सिफत सलाह) को सुना है।१।
April 26, 2016 : Today’s Hukamnama (Mukhwak) from Sri Darbar Sahib (Golden Temple) Amritsar in Gurmukhi and Hindi with Meaning in Gurmukhi, Hindi and English
Aasaa, Fifth Mehl, Shalok: If you chant the Naam, the Name of the Lord, Har, Har, the Messenger of Death will have nothing to say to you. O Nanak, the mind and body will be at peace, and in the end, you shall merge with the Lord of the world. ||1|| Chhant: Let me join the Society of the Saints – save me, Lord! With my palms pressed together, I offer my prayer: give me Your Name, O Lord, Har, Har. I beg for the Lord’s Name, and fall at His feet; I renounce my self-conceit, by Your kindness. I shall not wander anywhere else, but take to Your Sanctuary. O God, embodiment of mercy, have mercy on me. O all-powerful, indescribable, infinite and immaculate Lord Master, listen to this, my prayer. With palms pressed together, Nanak begs for this blessing: O Lord, let my cycle of birth and death come to an end. ||1||
हे भाई! परमात्मा का नाम सुमिरन करने से मौत का डर भयभीत नहीं कर सकता (आत्मिक मौत नजदीक नहीं आ सकती)। हे नानक! (सिमरन की बरकत से) मन सुखी रहता है, हृदय सुखी हो जाता है, और, आखिर में परमात्मा भी मिल जाता है।१। छंत। हे हरी! मैं दोनों हाथ जोड़ कर (तुम्हारे दर पर) बनती करता हूँ , मुझे अपने नाम की दात बक्शो। मुझे विकारों से बचाय रखो (कृपा करो) मैं तुम्हार संत जानो की संगत में रहूँ। हे हरी! मैं तुम्हारा नाम मांगता हूँ। अगर तुम कृपा करो तो मैं तुम्हारे चरणों में लगा रहूँ, (और अपने अंदर से) अहंकार त्याग दूँ। हे तरस-सवरूप प्रभु! (मेरे ऊपर कृपा करो, मैं तुम्हारी सरन में रहूँ, और (और तुम्हारा आसरा छोड़ कर) किसी और के पास न भागूं । हे सब ताकतों के मालिक! हे अकथ! हे बयंत! हे पवित्र-सवरूप स्वामी! मेरी यह अरदास सुन। तेरा दास नानक तुमसे यही दान मांगता है की मेरा जनम मरण का चक्र ख़तम कर दो।
April 25, 2016 : Today’s Hukamnama (Mukhwak) from Sri Darbar Sahib (Golden Temple) Amritsar in Gurmukhi and Hindi with Meaning in Gurmukhi, Hindi and English